। अन्तरा ।
गुण अवगुण सब तेरे अर्पण
बुद्धि सहित मन तेरे अर्पण
ये जीवन भी तेरी अर्पण
पाप पुण्य सब तेरे अर्पण
मैं तेरे चरणों की दासी, मेरे प्राण आधार
साँवरिया ले चल..................................।।1।।
तेरी आस लगा बैठी हूँ
लज्जा शील गँवा बैठी हूँ
अखियाँ खूब थका बैठी हूँ
अपना आप लुटा बैठी हूँ
साँवरिया मैं तेरी रागिनी, तू मेरा मल्हार
साँवरिया ले चल..................................।।2।।
तेरे बिना कुछ चाह नहीं है
जग की तो परवाह नहीं है
कोई सूझती राह नहीं है
तेरे बिना कुछ चाह नहीं है
मेरे प्रीतम मेरे माँझी, कर दो नैया पार
साँवरिया ले चल..................................।।3।।
आँगन आनन्द बरस रहा है
पत्ता-पत्ता हर्ष रहा है
पी पी कह कोई तरस रहा है
‘हरि’ बिचारा तरस रहा
बहुत हुई अब हार गई मैं, क्यों छोड़ा मझधार
साँवरिया ले चल..................................।।4।।
।। इतिश्री।।