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1. ओ३म् नाम सबसे बड़ा, वासे बड़ा न कोय ।
जो वाको सुमिरन करै, शुद्ध आत्मा होय।।
ओ३म् नाम अमृत भरा, सर्व सुखों की खान।
सबसे उत्तम नाम यह, करते वेद बखान।।
ओ३म् नाम में है भरा, सब नामों का सार।
ओ३म् नाम का सृष्टि में, हुआ प्रथम विस्तार।।
ओ३म् नाम अक्षर बना, अ उ म का योग।
जिसके शुभ संयोग से, नष्ट हो रोग।।
ओ३म् नाम अनमोल है, अमृत का भण्डार।
धार हृदय में नाम यह, जो चाहे निस्तार।।
2. जो तू चाहे ब्रह्म सुख त्याग भोग तुच्छन को,
धाम धन सम्पदा धरा हिये धरी रहैं।
जो तू चाहे रावँ-रंक आवें नतमस्तक हैं,
स्वच्छ कीर्ति चारिदस भवन भरी रहैं।।
जे तू चाहे दिव्य दारा-पुत्र और प्रवीण मित्र,
पद्मा पद्मासना हैं पौरि पै परी रहैं।
राखि के भरोसो जपि ‘ॐ’ महामंत्र देखु,
सिद्धियें बेचारी कर जोरि कै खरी रहैं।।
3. ओ३म् मेरे धर्म का मुख बोलता हुआ चित्र।
अकार, उकार और मकार से मिलकर बना ये विचित्र है।।
ईश्वर, जीव और प्रकृति का इसमें हुआ समावेश है।
सर्व व्यापक सबसे पृथक इसका न कोई देश है।।
योगियों के समीप है और पापियों से दूर है।
छोटी-बड़ी रचना सभी ओ३म् से भरपूर है।।
4. यह ‘ॐ’ अक्षर पर ब्रह्म सदा सब नामों का शिर तारा हैं।
ॐकार बिना सिद्ध होत नहीं तप योग यज्ञ आचारा हैं।।
यह सकल काम सिद्धि धाता प्रभुनेनिज धाम निकारा है।
ॐकार से निकले मंत्र सभी गायत्री आदिक सारा है।।
धर्म विद्या चतुर्दश है जग में सब ॐकार विस्तारा है।
वर्ण मात्र सब ‘ॐ’ से निकले ओउम करके होत उचारा है।।
ॐकार सकल घट व्यापक है सब नाम रूप आधारा है।
इमि जान भजे मन मांहि मुनि तिने प्राणों से अति प्यारा है।।
ओउम मंत्र का है अधिकार उसे जिसने ब्रह्मचर्य धारा है।
कहत ‘आचार्य’ तभी कल्याण होय ये वेद वेदांत पुकारा है।।
5. बड़ा है सबसे ओ३म् नाम तत्सार।
ओ३म् नाम बिन सिद्ध न होवे जप तप नेमाचार।।
ओणादि मन प्रत्यो भाई, अवधातु से ओउमहि गाई।
व्याकरण वाणी वेद गवा ही, कर देखा निरधार।।
ओमित्यो मिदगम ब्रह्म भाई, व्यापक है वो सबके माई।
श्रुति उपनिषद् कहे समझाई, प्रणवाक्षर उच्चार।।
अ, उ, म ब्रह्मजीव ओ माया, त्रय समुदाय ‘ॐ’ बतलाय।
लख अभेद धर ध्यानहिं, माया हो भवसागर पार।।
भ्रू बिच ‘ॐ’ अनहद तहँ भाई तापे ज्योति ज्योति मन थाई।
मन लय होय परम पद भाई, निज में आप निहार।।
‘ॐ’ अनादि अरूप अचल है, सब नामों में नाम सबल है।
जो सुमिरे होवे निर्मल है, परमतत्व की यही पुकार ।।
II ॐ II