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भक्ति संग्रह


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।। ओ३म् शब्द की विशेषता ।।

किसी भी ध्वनि का उच्चारण हम कण्ठ और तालु से करते हैं। स्पष्ट रूप से उच्चारित जितने भी शब्द हैं, उनकी उच्चारण क्रिया जीभ के मूल से आरंभ होती है और होठों में आकर समाप्त होती है। साथ ही हमारे मन में जो विचार उस शब्द के उच्चारण के समय होता है उसका एक प्रतिरूप भी मन में होता है जो उसके उच्चारण में प्रभाव डालता है अथवा हमारे मन में जब कोई शब्द उभरता है तो उसका एक भाव भी उच्चारण में तरंग पैदा करता है तो निश्चित ही इसका असर हमारे शरीर पर होता है। इस प्रकार से कोई भी अक्षर या शब्द अपनी विशिष्ट ध्वनि के साथ कम्पन पैदा करके मन और शरीर को प्रभावित करता है।

ओ३म् अ, उ, म के संयोग से बन ‘ॐ’शब्द को लें, तीनों अक्षरों का ‘ॐ’ के रूप में उच्चारण करने से ध्वनि उत्पादन की एक संपूर्ण क्रिया एक साथ पूर्ण रूप से प्रकट होती है। हमारी उच्चारण क्षमता में या ध्वनि उत्पादन शक्ति में जितने भी शब्दों के उच्चारण की संभावनाऐं हैं, वे सब इन तीनों अक्षरों के साथ समाहित हैं। ‘ओ’शब्द को लें, इसका उद्गम स्थल नाभि है, यह नाभि या तालु के अंश को स्पर्श किये बिना और बिना किसी कष्ट के बोला जाता है। इसका प्रादुर्भाव नाभि से होने के कारण, नाभि से कम्पन्न होकर जो प्रतिक्रिया होती है वह कण्ठ तक आती है। इस प्रकार हमारे स्वर यन्त्र अर्थात् गले से निकला हुआ यह ‘ओ’ बिना जीभ व तालु की सहायता लिए सीधा उच्चारित होता है। यह स्वरों का आदि स्वर भी है। ‘म’ ध्वनि श्रृंखला की अंतिम ध्वनि है क्योंकि इसके उच्चारण से होंठ बन्द हो जाते हैं। ‘उ’की ध्वनि नाभि से उत्पन्न होकर कण्ठ से निकलती अवश्य है लेकिन मुंह में जीभ की जड़ से आकर मुंह के मध्य भाग से होती हुई होठों का स्पर्श करके पुनः ध्वनि के आधार पर नाभ की ओर चली जाती है। इस तरह से ‘उ’ मध्यवर्ती ध्वनि है।

‘ओ३म्’का उच्चारण करने पर स्वरों के के आदि मध्य और अन्त की सम्पूर्ण क्रिया सम्पन्न हो जाती है। ‘ॐ’को वैज्ञानिक सार्थकता सिद्ध है लेकिन इस शब्द को किसी भी धर्म के साथ जोड़ना या किसी एक धर्म का शब्द मानना ठीक नहीं है। यह अपनी शक्ति को प्रकट करने वाला एक विशिष्ट वैज्ञानिक शब्द है, इसलिए हम ‘ॐ’ शब्द का उपयोग मन्त्र, प्रार्थना, स्तुति के रूप में करते हैं।

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