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यह व्रत फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन होता है। शिवरात्रि का अर्थ वह रात्रि है, जिसका शिव तत्व के साथ घनिष्ठ संबंध है। भगवान् शिव जी की अतिशय प्रिय रात्रि को शिव रात्रि कहते हैं। शिवार्चन और रात्रि जागरण ही इस व्रत की विशेषता है। इसमें रात्रि भर जागरण एवं रूद्राभिषेक का विधान है। पार्वती के पूछने पर भगवान शिव जी ने बताया कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कहलाती है। जो उस दिन उपवास करता है वह मुझे प्रसन्न कर लेता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चन्द्रमा सूर्य के समीप होता है। अतः वही समय जीवन रूपी चन्द्रमा का शिव रूपी शिव के साथ मिलन होता है। ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को आदि देव भगवान् शिव करोड़ो सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए।
महाशिव रात्रि पर्व परमात्मा शिव के दिव्य अवतरण का मंगलसूचक है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। वे हमें काम, क्रोध आदि विकारों से दूर कर सुख शांति एवं ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।
अतः इस चतुर्दशी को शिव पूजा करने से जीव को अभीष्टतम पदार्थ की प्राप्ति होती है। यही शिवरात्रि का रहस्य है। इस दिन शिव भक्तों को चाहिये कि किसी प्रतिष्ठित शिवालय में रूद्राभिषेक अथवा पार्थिव शिव लिंग की रचना कर के रात्रि के चारों प्रहरों में चार बार वेद विधि से पूजन एवं अर्चन करें।