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25.03.2025-Monday(Krishna Paksha)
श्रीकृष्ण जी बोले- हे धर्मपुत्र ! चैत मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम पाप मोचनी अथवा पापों को भस्म करने वाली है। इसका महात्म्य एक दिन लोमस ऋषि से राज मानधाता ने पूछा था। लोमस ऋषि बोले- एक चित्ररथ नामक सुन्दर बन था। देवराज इन्द्र का क्रीड़ा स्थल था। उस बन में एक मेधावी मुनि तपस्या करते थे, भगवान शंकर के भक्त थे। शंकर के सेवकों से कामदेव की जन्म से शत्रुता रहती है। अप्सराओं को साथ लेकर अपने मनमोहन सन्तापन इत्यादि पांच वाणों को कम लिया, मंजूखा नाम की अप्सरा ने मुनि के मन को हर लिया, भगवान शंकर का ध्यान भूल गये। मुनि ने मन मन्दिर का पति मंजूखा को बना दिया। मंजूखा के प्रेम ने मुनि का मन दिवाना बना दिया, रास विलास करते-करते 18 वर्ष व्यतीत हो गए, अप्सरा स्वर्ग जाने की आज्ञा मांगने लगी। मुनि बोले- आज पहला दिन ही तो है, कल चली जाना। अपसरा ने पंचांग खोलकर दिखाया तो मुनि को ज्ञात हुआ, इस हत्यारनी ने मेरी तपस्या को भंग कर दिया। क्रोधित हो गए, पिशाचनी बनने का शाप दे दिया। अप्सरा बोली, मेरा उद्धार कैसे होगा। मुनि बोले- पाप मोचनी एकादशी के प्रभाव से तुम्हें फिर दिव्य शरीर मिलेगा। ऐसा कहकर मुनि अपने पिता च्यवन ऋषि के पास चले गये, अपने पाप कर्म से उद्धार होने का उपाय पूछा। पिता ने भी पाप मोचनी एकादशी का व्रत कहा। अतः मुनि तथा मंजूषा दोनों ही इस व्रत के प्रभाव से पापों से छूट गए।
फलाहार- इस दिन चिरोंजी का सागार लिया जाता है।