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मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम का विवाह मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की पंचमी को जनकपुर में सम्पन्न हुआ। सीता स्वयंबर में भगवान् के द्वारा धनुष तोड़ने के पश्चात् जनक जी के द्वारा अयोध्या दूत भेजने पर महाराज दशरथ बारात लेकर जनक पुर आये। उसके बाद विवाह की विधि पंचमी को सम्मन्न हुई। इसलिये आज भी अयोध्या में तथा जनकपुर में विवाह पंचमी का महोत्सव बड़े धूमधाम से प्रत्येक मंदिर में मन
शिव पुराण की रूद्र संहिता के अनुसार सदा शिव ने मार्गशीर्ष (अगहन) मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरव रूप में अवतार लिया। अतः उन्हें साक्षात् भगवान शंकर ही मानना चाहिए।
भैरवः पूर्णरूपो हि शङ्करस्य परात्मनः ।
मूढास्तं वै न जानन्ति मोहिता
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहते हैं, इसमें यमराज का पूजन होता है और कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुण्ठ चतुर्दशी कहते हैं। बैकुण्ठ चतुर्दशी को प्रणवेश (विष्णु) केदारेश (शंकर भगवान) की पूजा करनी चाहिये। इस दिन कमल पुष्प से पूजन किया जाय तो सर्वश्रेष्ठ है।
प्राप्तः स्नान आदि से निवृत्त हो दिन भर व्रत रखें, तथा रात्रि में भगवान विष
कार्तिक मास में एक मास का व्रत व स्नान न कर सके तो वह कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक सूर्योदय से पूर्व स्नान एवं व्रत करने से कार्तिक मास का पूर्ण फल प्राप्त करता है। पुष्कर तीर्थ में जहां ब्रह्माजी ने यज्ञ किया था। ऋद्धालु आज भी जाकर नियम पूर्वक स्नान करते हैं एवं व्रत करते हैं। नारद जी ने ब्रह्मा जी से पूछा-इसका इतना बड़ा फल क्या है। ब्रह्म जी ने कहा-वत्स शरशय्या पर
एक मत से - कार्तिक शुक्ला नवमी से एकादशी तक तुलसी विवाह मनाते हैं। एक मत से कार्तिक शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी जी का विवाह मनाते हैं।
सर्वमान्य देवोत्थापिनी एकादशी को ही तुलसी जी का विवाह शालग्राम भगवान् से करना चाहिए।
अतः कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को तुलसी जी का विवाह शालग्राम शिला से कराना चाहिए। 2-3 महीने पहले तुलसी वृक्ष को ग
कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान नारायण शयन से उठते हैं। इस दिन भगवान को सायंकाल के समय शंख घंटा घड़ियाल के द्वारा जगाना चाहिए।
प्रार्थना करनी चाहिए
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरूडध्वज ।
उत्तिष्ठ कमला कान्त त्रैलोक्यं मंगलं कुरू ।।
प्रभो उठिये और त्रिलोकी का मंगल करिये तथा उठाक
ब्रह्माजी ने उत्कृष्ट तप किया। भगवान ने प्रसन्न होकर दर्शन दिये दर्शनानन्द से प्रेमाश्रु टपके, इसी से आंवले की उत्पत्ति हुई। पुराणों में निर्देश दिया है, यह परम पवित्र आमलकी फल उदर (पेट) में हो तो-यमदूत स्पर्श नहीं करते। मृत्यु के पश्चात् तुलसी या आवंला, गंगा जल से मनुष्य भगवद्धाम का अधिकारी होती है। आंवले के दर्शन पूजन भक्षण से प्रभु प्रेम की प्राप्ति होती है। भोजन के
इसी नवमी को आँवला के वृक्ष के जड़ के पास बैठकर ‘‘धात्र्यै नमः” कहकर आह्वान करें। जल से पाद्य से अर्ध्य से आचमन आदि के निमित्त वृक्ष के मूल में जल चढ़ायें। फिर दूध की धारा दें। दूध के पश्चात् पुनः जल चढ़ायें। फिर मन्त्र उच्चारण पूर्वक सूत्र (धागा) लपेटे।
मन्त्र-
दामोदर निवासायै धात्र्यै देव्यै
कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को कूष्माण्ड नवमी कहते हैं। इस दिन भगवान् विष्णु ने कूष्माण्ड नाम के राक्षस का वध किया था। इस दिन कूष्माण्ड (कुम्हड़ा) में सोना पंचरत्न या द्रव्य रखकर उसकी पूजा करनी चाहिए। संकल्प इस प्रकार करें - मम सकल पापक्षय पूर्वक सुख सौभाग्य आदीनां उत्तरोत्तर वृद्धये कूष्माण्ड दानं करिष्ये। अक्षय नवमी - आँवला नवमी (कूष्माण्डा नवमी)
गोपाष्टमी कथा तथा गोपालक श्रीकृष्ण
एक दिन कन्हैया बाबा नन्द एवं मैया यशोदा के सामने मचल गये। अब मैं बड़ा हो गया, गैया चराऊँगा। माँ ने समझाया-लाला बड़ी-बड़ी सींग वारी गैया मरखनी होंय। लाला तू अभी छोटो है, गर्ग जी से मुहूर्त निकलवाय के गौपूजन के पश्चात् तोय गाय चराइबे जान देंगे। प्रभु प्रेरणा से गर्ग ऋषि सामने से आते हुए दिखाई दिये। नन्दाबाबा ने कहा-मह